Saturday, July 29, 2023

एक ही सवाल वो बार बार दोहराते हैं

महंगा फ़ोन लेने पर जाने कितना सुनाते हैं


तुम्हारे बड़े मुकामों पे मिलती हैं छोटी छोटी शाबाशियाँ

पर अपने दिनों की चलती रहती रात- दिन किस्सेगोइययाँ.

थोड़े ज़िद्दी, थोड़े अकड़ू अब होने लगे हैं

रोशनी के साथ आँखों की चमक भी खोने लगे हैं


बचपन के कंधों का सिंहासन अब झुका खुका सा लगता है

एक निवाले के लिए पीछे भागने वाली के घुटनों में अब बस दर्द बसता है


एक पल के लिए छोड़ दो तुम अपना सारा व्यापार

और बटोर लो दोनो हाथों से उनका आशीर्वाद और क़िस्सों का भंडार

क्योंकि जीवन ने अपने आप को कुछ ऐसा लाकर मोड़ा है

की मां- बाप के साथ अब वक़्त बहुत थोड़ा है

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