Saturday, October 1, 2016

तुम सा नहीं है मेरा शहर
सतरंगी है, एकरंगा नहीं.

तुम से बिलखते बच्चे हैं तो क्या
चमचमाती इमारतें छुपा देती हैं उन्हें
बहन का दुपट्टा खींचा है बहुतों ने
पर ज़हानत की चर्चा है समंदर पार भी

क्यों न इतरायें हम खुद पर
तंग नज़र नहीं जो तुम जैसी
राह थम जाती है काली बिल्ली पे
पर सड़कें तो बेहतर हैं तुम से

हरफनमौला है मेरा शहर
दिल दरिया और नज़रें पैनी हैं
होंगे हुनरमंद तुम्हारे भी चमन के
महकाया होगा गुलों को तुमने भी
 पर अब ना देना दस्तक चौखट पे
कुंडियां लगा दी हैं दरवाज़े की
क्योंकि तुम सा नहीं है मेरा शहर.

3 comments:

Abhishek said...

Very well written. You are finally writing like me.

Nishu said...

Very deep and beautifully written... Waiting for the day when I dont feel united because we are ONE.

Banjot Kaur Bhatia said...

Read twice, but the last two line s said it all. So very symbolical!! Btw, congratulations on starting again and hope it would continue....