ना फूलों पे सोई थी मैं
ना पलकों पे खेली
ना रेशम में लिपटी थी मैं
ना झूलों में झूली
नरम नरम बिस्तर ना मेरा
ना षटरस पकवान
ना कोई थी मधुर कहानी
ना लोरी की तान
रंग बिरंगे कपड़े कब थे
कब थी बिंदिया लाली
ना ही कोई गुड़िया मेरी
सुंदर आँखों वाली
मिट्टी ने हैं पाला मुझको
मिट्टी ने है काढ़ा
मिट्टी का ही रंग चढ़ा है
मुझपर इतना गाढ़ा
कहते हो तुम नही है मुझमे
कोई अदब की आशा
कहते हो तुम भूल मैं जाऊँ
अपनी ये परिभाषा
कहते हो तुम जंग नही ये
दुनिया की रीतें हैं
कहते हो की मुझसे कम हैं
सब रीतो में जीतें हैं
कहते हो तुम मैं छुप जाऊँ
सोने के महलों में
कहते हो तुम मैं घुल जाऊँ
मीठी इन गज़लों में
कहते हो के बन जाऊँ मैं
सुघड़ और संस्कारी
पर ना जाने कब समझोगे
तुम मेरी लाचारी
कैसे मैं बतलाऊँ तुमको
नदी नही सागर हूँ
जल कर, तप कर, आज बनी जो
सपनों की गागर हूँ
साँचे में ना आऊँगी मैं
नही बनूँ परछाई
मिट्टी हूँ, नही ख़ौफ़ किसी का
मैं संघर्षों की सिपाही।
ना पलकों पे खेली
ना रेशम में लिपटी थी मैं
ना झूलों में झूली
नरम नरम बिस्तर ना मेरा
ना षटरस पकवान
ना कोई थी मधुर कहानी
ना लोरी की तान
रंग बिरंगे कपड़े कब थे
कब थी बिंदिया लाली
ना ही कोई गुड़िया मेरी
सुंदर आँखों वाली
मिट्टी ने हैं पाला मुझको
मिट्टी ने है काढ़ा
मिट्टी का ही रंग चढ़ा है
मुझपर इतना गाढ़ा
कहते हो तुम नही है मुझमे
कोई अदब की आशा
कहते हो तुम भूल मैं जाऊँ
अपनी ये परिभाषा
कहते हो तुम जंग नही ये
दुनिया की रीतें हैं
कहते हो की मुझसे कम हैं
सब रीतो में जीतें हैं
कहते हो तुम मैं छुप जाऊँ
सोने के महलों में
कहते हो तुम मैं घुल जाऊँ
मीठी इन गज़लों में
कहते हो के बन जाऊँ मैं
सुघड़ और संस्कारी
पर ना जाने कब समझोगे
तुम मेरी लाचारी
कैसे मैं बतलाऊँ तुमको
नदी नही सागर हूँ
जल कर, तप कर, आज बनी जो
सपनों की गागर हूँ
साँचे में ना आऊँगी मैं
नही बनूँ परछाई
मिट्टी हूँ, नही ख़ौफ़ किसी का
मैं संघर्षों की सिपाही।